॥ ऐं ब्रह्माय नमः ॥
जय ब्रह्मा देवा, जय वेदधर्मा।
जय विष्णु रूपा, जय निर्गुण धर्मा॥
चार वेद की रचना तुमने, जगत पिता बनाया।
चार भुजाएं चार दिशाओं में, सृष्टि चक्र चलाया॥
सांकल यज्ञोपवीत धारी, कमंडलु धर शोभित।
ज्ञान स्वरूपा ज्ञान गंभीरा, लोक त्रय के स्वामी॥
हंस वाहन सदा विराजत, करते वेद निराला।
दया धर्म का मूल है पालन, ब्रह्मा रखते ख्याला॥
वेदों के तुम ही तो देवा, सब संतन को सुखदायी।
ब्रह्मा जी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥
जय ब्रह्मा देवा, जय वेदधर्मा।