II ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। II
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥
जय अम्बे गौरी॥
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को।
उज्जवल से दोऊ नैना, चन्द्रवदन नीको॥
जय अम्बे गौरी॥
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजे।
रक्त पुष्प गलमाला, कण्ठन पर साजे॥
जय अम्बे गौरी॥
केहरि वाहन राजत, खड़ग खप्पर धारी।
सुर-नर मुनि जन सेवत, तिनके दुःख हारी॥
जय अम्बे गौरी॥
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, राजत सम ज्योति॥
जय अम्बे गौरी॥
शुम्भ निशुम्भ बिदारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती॥
जय अम्बे गौरी॥
चण्ड-मुण्ड संहारे, रक्तबीज हरे।
मधु-कैटभ दोऊ मारे, सुर भयहीन करे॥
जय अम्बे गौरी॥
ब्राह्मणी रुद्राणी, तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी॥
जय अम्बे गौरी॥
चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों।
बाजत ताल मृदंग, अरु बाजत डमरू ढेरो॥
जय अम्बे गौरी॥
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुःख हर्ता, सुख सम्पत्ति कर्ता॥
जय अम्बे गौरी॥
भुजा चार अति शोभित, खड्ग खप्पर धारी।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी॥
जय अम्बे गौरी॥
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्री मल्लिका मृदु माल, शंकर सुप्रसन्न॥
जय अम्बे गौरी॥