दोहा:
श्री रघुवीर भक्त हितकारी।
सुनहु कृपानिधि अति सुखकारी।।
दोहा करहुँ कृपा घनश्याम।
श्री राम जय राम जय जय राम।।
चौपाई:
जय जय राम, रघुकुल के रत्ना।
सदा जाहि के चरण निरंतर मन लागे।
सुमिरत ही नाम उर में बसे।
भक्तों के सब संकट हरसे।।
मुनि-वृन्द की मति सुथरी करी।
जो तुम्हारे नाम की महिमा सरी।
श्री राम तुम राखो धीरजु।
सुनहु दीनदयालु जग पालक वसु।।
दीनजन सुखकारी करुणा हो।
नाम तुम्हारो पार लगावे सुखदाई।
शरणागत तुमको भवधारा।
जो तुम्हें सुमिरत हैं दुख हारा।।
अतिशय गुण तुम्हारो मर्दन करियो।
रघुनाथ जी तुमको साधु-संकेत थिर।
धीरज धारण कीन्हा तुम राम।
जन हितकारी हरत दुख भारी।।
जो कोई तुम्हारो भजन करें।
वह नर सुख-धाम प्राप्त करैं।।
राम नाम की महिमा न्यारी।
जो सुमिरत ह्रदय अति प्यारी।।
जो श्री राम चालीसा गावे।
भक्ति प्राप्त कर प्रभु सुख पावे।।
सकल मुनि श्री राम कहावत।
जनम-जनम में धन्य हो जावत।।
दोहा:
राम नाम सुखकारी होय।
सकल मुनि जन सुमिरन सोय।।
ध्यान धरत हरि पावत होय।
राम-भक्त सुखधाम न होय।।