दोहा:
जय लक्ष्मीपति विष्णु भगवाना।
सुर नर मुनि सब करते गाना।।
सदा ध्यावत ब्रह्मादिक देवा।
जय विष्णु भगत के दुःख हर्ता।।
चौपाई:
जय जय जय लक्ष्मीपति दीनदयाला।
सदा सुखी हो तुमरे रखवाला।।
शंख चक्र गदा धारी मधुसूदन।
करुणा सिंधु मूरति भवभंजन।।
पीताम्बर पहिने हो सुन्दर।
श्यामल तन शोभा अति उज्ज्वल।।
लक्ष्मीपति महिमा अगम अपारा।
जग पालन करत अवतारा।।
कश्यप अदिति पुत्र वामना।
कृष्ण रूप धरि कीन्हो बिधाना।।
शेष शैया पर शोभा प्यारी।
गरुड़ वाहन जग महिपाल।।
वराह रूप धरि धरम बढ़ायो।
हिरण्याक्ष को संहार करायो।।
नृसिंह रूप धरि असुर संहारा।
प्रह्लाद के संकट तारा।।
राम रूप लीन्हो अवतारा।
रावण को संहार कर डारा।।
कृष्ण रूप धरि कर्म सिखायो।
गीता में अर्जुन को बतायो।।
यह चालीसा जो नर गावे।
विष्णु लोक में वह सब पावे।।
दुख दरिद्र न ताहि सतावे।
हरि के चरण सदा सुख पावे।।
दोहा:
जय जय जय विष्णु भगवान।
जन हितकारी दीनदयाल।।
जो यह चालीसा को गावे।
विष्णु लोक में वह सुख पावे।।