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श्री गणेश चालीसा

दोहा:

जय गणपति साद गुणसदन, कृपा सिंधु सुंदर सब तन।
सिद्धि सरोज दाता सुमिरो, श्री करुणा करण।।

चौपाई:

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।

एक दन्त, दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूस की सवारी।।
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा।।

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।।
हार चढ़े, और चढ़े, सिंदूर का चोला।
सूर्य शस्त्र और नाग ले, मूषक है सोहला।।

दुर्गम कार्य बनाए सहज, सब रोग हरे।
जो भी नर मन से सुमिरन करे, विघ्न विनाश करे।।
जो कोई नर तुमको ध्यावे, अथवा पढ़े चालीसा।
सकल मुनि जन साधु नर, मिले चित्त अलीसा।।

दोहा:

जय जय जय गणपति गणराजू,
मंगल भरण कृपा अति धीराजू।
संकट मोचन मंगलकारी,
ध्यान धरें जो नर सुखारी।।

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