दोहा:
जयति जयति केतु ग्रह, पाप विनाशक नाम।
जो भी सुमिरन करे तुम्हें, पावे शुभ फल धाम।।
चौपाई:
जय श्री केतु देव अति बलवाना।
दुखहारी भक्तन के प्राणा।।
तुम ही हो ग्रहों के नियंता।
तुम हो सबके दुख हरनहारा।।
सिर से बिना तुम विचरण करते।
कृपा करो हे, विपत्ति हरते।।
मनुष्यों का जीवन सुधारो।
भक्तों का संकट निवारो।।
जो राहु के संग तुम्हारा हो संग।
जीवन में भरते हो रंग।।
तुम्हारी पूजा जो नर गावे।
जीवन में सब संकट मिटावे।।
तुम ही हो विपत्ति के हरन।
भक्तों के तुम हो उद्धारन।।
पापों का तुम करते हो नाश।
भक्तों को देते हो तुम अश्वाश।।
धन, वैभव और यश हो पावे।
जो भक्त सच्चे मन से ध्यावे।।
जो कोई केतु चालीसा गावे।
उसके जीवन में सब सुख पावे।।
राहु के संग हो तुम बलशाली।
जो कोई करे तुम्हारी भली सवारी।।
दोष सभी तुम मिटा डालो।
भक्तों का कष्ट दूर कर डालो।।
जो कोई सच्चे मन से गावे।
जीवन में संकट न पावे।।
केतु देव की महिमा भारी।
सुनते ही कटे विपदा सारी।।
यह चालीसा जो भी पढ़े।
केतु देव की कृपा हो खड़े।।
मनवांछित फल वह पावे।
जीवन के सब दुख मिटावे।।
दोहा:
जय श्री केतु ग्रह महाराज।
करहु कृपा सबके सिर ताज।।
जो कोई इसको गावे।
केतु दोष से मुक्ति पावे।।