दोहा:
जय राहु देव अति दयाला।
सदा करत जन पर कृपाला।।
जो भी ध्यान करे मन लाई।
राहु दोष से मुक्ति पाई।।
चौपाई:
जय राहु देव, ग्रहों में राजा।
तुमसे भय हरते नरक का साजा।।
सर्प रूप में तुम विचरो धानी।
मनुष्य को देते हो यश और भवानी।।
शत्रु को तुम हरते हो चट से।
दुष्टों का करते हो विनाश तट से।।
कालसर्प का तुम ही हो मेटा।
भक्तों को देते हो शरण का घेता।।
सिंह पर होकर हो तुम सवार।
भक्तों के कष्ट हरते एक बार।।
राहु ग्रह की तुम हो माया।
तुमसे दुख दरिद्र मिटाया।।
जो भी शरण में आता तुम्हारे।
दुख दरिद्र न हो सहारे।।
तुम्हीं तो हो कालसर्प नाशक।
तुम्हीं देते सबको आश्रय और दानक।।
सर्प रूप का भय हरते हो।
जीवन में यश, धन भरते हो।।
कृपा करो हे राहु महाराज।
जो भी तुम्हें ध्यावे, पावे काज।।
राहु के दोष को जो भी मिटाए।
वह नर जीवन में सुख पाये।।
जो कोई राहु चालीसा गावे।
सभी संकट राहु देव मिटावे।।
यह चालीसा जो भी पढ़े।
राहु देव की कृपा हो खड़े।।
मनवांछित फल वह पावे।
सभी संकट मिट जाए।।
दोहा:
जय राहु देव, ग्रहों में धानी।
तुम हो भक्तों की कृपा दानी।।
जो राहु चालीसा को गावे।
राहु दोष से मुक्ति पावे।।