दोहा:
जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता।।
चौपाई:
जय जय सरस्वती माँ, जय विध्यादायिनी।
ज्ञान की देवी तुम, हो सुख प्रदायिनी।।
श्वेत वस्त्र है शोभित, श्वेत कमल पर आसन।
वीणा और पुस्तक, कर में विराजे हैं जन।।
मुकुट शीश पर शोभित, मणियों की माला।
देव, शत्रु, मुनि-जन, सब करें जयमाला।।
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर, तीनों देव तुम्हें ध्यावें।
जो भी करें ध्यान तुम्हारा, सब विद्या पावें।।
तुम हो बुद्धि की दाता, बुद्धिहीन को बुद्धि दीजो।
मोह, अज्ञान और तम को दूर कर दो, माँ।।
ध्यान करें जो तुम्हारा, मन से लगाकर।
सभी कष्ट मिट जाएं, जीवन हो सुखदायक।।
विद्या, ज्ञान की हो माँ, तुम हो वन्दनीया।
सब जग में तुम हो, माँ, अति पूजनीय।।
तुम ही हो कला की देवी, संगीत की रानी।
तुमसे ही सब ज्ञान हो, तुम हो सविता भवानी।।
जो कोई सुमिरे तुम्हें, और गाए चालीसा।
उसके जीवन में हो विद्या का अधीसा।।
सभी विद्या का वरदान पावे।
संकट के बादल दूर हो जावे।।
यह चालीसा जो कोई गावे।
ज्ञान-विज्ञान से जीवन सुख पावे।।
दोहा:
माँ सरस्वती की कृपा, सदा हो सब पर।
जीवन में हो विद्या, और ज्ञान का विस्तार।।